सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी: न्यायिक अधिकारी की बहाली में देरी – जब जज को इंसाफ मिलने में 15 साल लग गए तो आम इंसान कहां जाए?–डिजायर न्यूज़
सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी: न्यायिक अधिकारी की बहाली में देरी – जब जज को इंसाफ मिलने में 15 साल लग गए तो आम इंसान कहां जाए?–डिजायर न्यूज़
डिजायर न्यूज़ नई दिल्ली –सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा एक न्यायिक अधिकारी को बहाल न करने पर कड़ी नाराजगी जताई है। यह मामला उस अधिकारी से संबंधित है, जिसे उसकी पत्नी द्वारा अवैध संबंध के आरोपों के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में इस बर्खास्तगी को अवैध करार दिया और न्यायिक अधिकारी को सेवा में वापस लेने का आदेश दिया था। फिर भी, उच्च न्यायालय ने अब तक इस आदेश का पालन नहीं किया है, जिससे सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आपत्ति जताई है। यह मामला 2009 से अदालतों के बीच घूम रहा है, और अब तक कोई समाधान नहीं निकला है।
यह मामला 2009 में तब शुरू हुआ, जब एक पुरुष न्यायिक अधिकारी की पत्नी ने अपने पति पर आरोप लगाया कि उसके एक महिला न्यायिक अधिकारी के साथ अवैध संबंध हैं। ये आरोप नवंबर-दिसंबर 2008 के दौरान सामने आए। आरोपों के आधार पर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 17 दिसंबर, 2009 को उस पुरुष अधिकारी और संबंधित महिला अधिकारी, दोनों को सेवा से बर्खास्त कर दिया।
हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने इस बर्खास्तगी के फैसले को पास किया था। इसे राज्य सरकार ने तुरंत लागू कर दिया, जिसके बाद दोनों अधिकारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गईं। यह बर्खास्तगी कार्यस्थल पर अवैध संबंधों के आरोपों के आधार पर की गई थी, और दोनों अधिकारियों पर गंभीर अनुशासनहीनता के आरोप लगे थे। बाद में महिला अधिकारी को बहाल कर दिया। अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ, पुरुष न्यायिक अधिकारी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और फैसले को चुनौती दी। यह मामला कई सालों तक हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच खिंचता रहा। इस दौरान, अधिकारी ने कई बार न्याय की गुहार लगाई और अपनी बहाली की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 20 अप्रैल, 2022 को अपना फैसला सुनाया। अनंतदीप सिंह बनाम हाई कोर्ट ऑफ हरियाणा एंड पंजाब कोर्ट ने पुरुष न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी को अवैध करार दिया और आदेश दिया कि उसे तुरंत सेवा में बहाल किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बर्खास्तगी के लिए ठोस और पुख्ता आधार नहीं था, और केवल आरोपों के आधार पर अधिकारी को बर्खास्त करना गलत था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारी को उसकी बर्खास्तगी की तिथि से लेकर बहाली तक का पूरा वेतन दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही, उसे सभी अन्य लाभ भी मिलेंगे, जो कि उसकी सेवा के दौरान उसे मिलने चाहिए थे।
एक दिलचस्प बात यह है कि 26 अक्टूबर, 2018 को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने महिला न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी को अवैध करार दिया था और उसे वापस सेवा में बहाल कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने यह कहा था कि महिला न्यायिक अधिकारी के खिलाफ लगाए गए अवैध संबंध के आरोपों में कोई दम नहीं है, और इसलिए उसे बर्खास्त करना गलत था। इसके बावजूद, पुरुष न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी को रद्द नहीं किया गया, जबकि दोनों के खिलाफ एक ही तरह के आरोप थे। इस बात को सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में भी उल्लेखित किया और इसे न्यायिक प्रणाली की गंभीर चूक बताया। 15 साल से अधिक समय से यह मामला अदालतों में चल रहा है, और अधिकारी को अब तक न्याय नहीं मिल पाया है। यह घटना न्यायिक प्रणाली की खामियों और उसमें सुधार की आवश्यकता को दर्शाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक आदेश जारी करते हुए कहा कि जब 2022 में बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया गया है, तो अधिकारी को सेवा में बहाल किया जाना चाहिए था। साथ ही, बर्खास्तगी की तिथि से लेकर अब तक का बकाया वेतन भी उसे दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर अधिकारी को 2 अप्रैल, 2024 तक बहाल नहीं किया जाता है, तो यह न्यायिक प्रणाली की गंभीर चूक मानी जाएगी। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि अधिकारी को 50 प्रतिशत बकाया वेतन का भी हक दिया जाएगा, जो कि 17 दिसंबर, 2009 से लेकर 20 अप्रैल, 2022 तक की अवधि का होगा।

यह मामला 2009 से शुरू हुआ और अब तक खिंचता चला आ रहा है। 15 सालों से यह कानूनी लड़ाई चल रही है, जिसमें कई बार उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट के आदेश आए। फिर भी, अब तक अधिकारी को बहाल नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के 2022 के आदेश के बाद भी, हाई कोर्ट और राज्य सरकार की खोखलेपन ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया आदेश में साफ नाराजगी जताई है कि इतने लंबे समय तक न्यायिक अधिकारी को बहाल नहीं किया गया, जबकि अदालत ने 2022 में ही बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि यह न्यायिक प्रक्रिया का अपमान है और यह न्यायिक अधिकारियों के प्रति एक गंभीर अनदेखी है।
यह मामला भारतीय न्यायिक प्रणाली की धीमी गति और न्यायिक अधिकारियों के प्रति उच्च अदालतों के व्यवहार पर गंभीर सवाल खड़े करता है। जहां एक ओर न्यायिक प्रणाली से शीघ्र और निष्पक्ष न्याय की उम्मीद की जाती है, वहीं दूसरी ओर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी ने न्यायिक प्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया है कि अधिकारी को 2 अप्रैल, 2024 तक बहाल किया जाना चाहिए और उसे सभी बकाया वेतन और लाभ दिए जाने चाहिए। अब यह देखना होगा कि हाई कोर्ट और राज्य सरकार इस मामले में क्या कदम उठाते हैं और अधिकारी को न्याय दिलाने की प्रक्रिया कितनी तेजी से आगे बढ़ती है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बर्खास्त न्यायिक अधिकारी को बहाल न किए जाने से सरकार को बड़ा वित्तीय नुकसान उठाना पड़ सकता है। यदि अदालत के आदेश के अनुसार अधिकारी को उसकी पूरी तनख्वाह दी जाती है, तो सरकार को कई वर्षों की बकाया तनख्वाह का भुगतान करना होगा। इस अधिकारी की बर्खास्तगी 2009 से विवादित रही है, और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी उसकी बहाली नहीं की गई। इससे सरकार को कानूनी लड़ाई और वित्तीय दायित्वों का भारी बोझ उठाना पड़ सकता है।
यह मामला केवल एक न्यायिक अधिकारी की बहाली से संबंधित नहीं है, बल्कि यह न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता और जवाबदेही का भी सवाल है। इतने सालों तक न्यायिक प्रक्रिया में खिंचाव और उच्च अदालतों के खोखलेपन ने इस मामले को और भी जटिल बना दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी अधिकारी को बहाल न करना न्यायिक प्रणाली की गंभीर चूक है, और इससे न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं।
यह मामला साफ़ दर्शाता है कि आज एक आम नागरिक के लिए न्याय लेना कितना कठिन है अभी भी पूरे देश में निचली अदालतों से लेकर हाई कोर्ट में हज़ारो पद ख़ाली पड़े है लेकिन केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार इस पर मौन है जब की मामला सभी के संज्ञान में है अनंतदीप सिंह बनाम हाई कोर्ट ऑफ हरियाणा एंड पंजाब कैसे एक समाज के लिए उदारहण है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी सालो लग गए इन्साफ मिलने में एक जज को ही ,जबकि साथी महिला जज को तभी इन्साफ मिल गया , अगर 2009 से लेकर 2022 तक आधी सैलेरी और उसके बाद की पूरी सैलेरी भी दी जाती है तो भी लाखो रूपये दिए जायेगे जो की जनता का ही पैसा है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के चकर में अगर इस केस में 15 साल लगे है अगर मामला कही निचली अदालत का होता तो श्याद इन्साफ 30 साल में भी नहीं मिल पाता।
संजीव शर्मा
एडिटर इन चीफ
अलीशा शाहिद
अस्सिस्टेंट सुब एडिटर